याद है तुम्हे वह शादिकी रात?
बरसों कि तमन्ना जब पूरी हुई थी,
तुम और मैं - लिपट के एकदूजेमे
ऐसे खो गए कि पता ना चला
सुबह कब होगया ।
मैं आज भी, हर रोज - जब
अपने आंखे खोलता हूं -
तुम्हे उसी दुल्हन के रूपमें पाता हूं ।
जब रातकी बातें सब याद करके,
तुम शरमाने लगती हो -
मेरे सूरज तुम्हारे चेहरे से निकल आता है -
मेरे सुबह हो जाता है ।
- भाष्कर ढकाल